Thursday, December 26, 2013

बादलोँ को धन्यवाद

सुबह सुबह या दोपहर में 
और कभी रात में भी शायद
देखा है बादलोँ को बनते,
लड़ते- बिगड़ते , बहते शायद 
बंगाल की खाड़ी में कारखाना लगा हो जैसे
खेल का मैदान बन गया हो आसमान जैसे 
नये- पुराने, काले-गोर , मोटे-छोटे
सब तरह के , हँसते खिलखिलाते से
कुछ धीरे- धीरे थके हारे से
तो कुछ जल्दी में हड़बड़ाते से
चले जा रहे होते हैं
मदमस्त होकर इतराते से
नशे में चूर हों मानो
मंज़िल बहुत दूर हो मानो
सब देखते से जाते हैं
विचारते सोचते से जाते हैं
सूखी धरती से सूखे दिल का हाल जानते हो मानो
लुटाने को अपना सब कुछ  बेक़रार हो मानो
ले आते  हैं ये रिमझिम बौछार हर बार
थोड़ी पुरानी यादें और थोड़ा पुराना प्यार

Wednesday, December 25, 2013

I could have saved a life that day

I could have saved a life that day,
But I chose to look the other way.
It wasn’t that I didn’t care,
I had the time, and I was there.
But I didn’t want to seem a fool,
Or argue over a safety rule.
I knew he’d done the job before,
If I called it wrong, he might get sore.
The chances didn’t seem that bad,
I’ve done the same, he knew I had.
So I shook my head and walked on by,
He knew the risks as well as I.
He took the chance, I closed an eye,
And with that act, I let him die.
I could have saved a life that day,
But I chose to look the other way.
Now every time I see his wife,
I’ll know I should have saved his life.
That guilt is something I must bear,
But it isn’t something you need to share,
If you see a risk that others take,
That puts their health or life at stake.
The question asked, or thing you say,
Could help them live another day.
If you see a risk and walk away,
Then I hope you never have to say,
I could have saved a life that day,
But I chose to look the other way
                                  

                            - Don Merrell

Sunday, December 22, 2013

लव्ज़ बेवफा हो गए

ऐसा न होता कि वो दौड़े मेरे पास न आते 
अगर मेरे दिल का हाल वो जान पाते 
उनकी रहमदिली पर हमें पूरा भरोसा है 
उनका प्यार हमारे लिए सच्चा है 

पर इन्होने दिया हमें धोखा 
ये हमको दगा दे गए 
मेरा संदेशा  ही नहीं पहुंचाते 
ये लव्ज़ क्यों बेवफा हो गए

समंदर आंसुओं का बहा देते थे 
एक आह पर हमारी वो सबकुछ  लुटा देते  थे 
ऐसा न होता कि आज हम बारिश में आंसू छुपाते 
भीड़ में भी खुद को तनहा पाते 

गूंगा कर दिया हमारे जैसे मसखरे को भी 
इनकी इस जुर्रत  से हम  तो सफा हो गए
मेरा संदेशा  ही नहीं पहुंचाते 
ये लव्ज़ क्यों बेवफा हो गए

ये लव्ज़ क्यों बेवफा हो गए …

Thursday, November 28, 2013

बजरंगबली के चरणो में

बजरंगबली के चरणो में सर रखकर हमको सोने दे
जो होता है सो होने दे , जो होता है सो होने दे

जो आना है वो आएगा
जो जाना है वो जायेगा
इस रंग बदलती दुनिया में
अब और न हमको भटकने दे

बजरंगबली के चरणो में सर रखकर हमको सोने दे
जो होता है सो होने दे , जो होता है सो होने दे

बजरंगबली अब आजाओ
भक्तो कि लाज बचा जाओ
इस बाजारों के मेले में
अब और न हमको बिकने दे

बजरंगबली के चरणो में सर रखकर हमको सोने दे
जो होता है सो होने दे , जो होता है सो होने दे

संकट से तूने उबारा है
हर पल तेरा ही सहारा है
तेरे चरणो में मुक्ति पाऊँ
अब और न हमको सिसकने दे

बजरंगबली के चरणो में सर रखकर हमको सोने दे
जो होता है सो होने दे , जो होता है सो होने दे

बजरंगबली के चरणो में सर रखकर हमको सोने दे

Friday, November 1, 2013

एहसास


ज़िन्दगी बदल गई मेरी मुझे जीना आगया।

हवा में मेहक सी जान पड़ती है
फ़िज़ा में एक चहक सी जान पड़ती है
हर कोई जैसे मुस्कुरा रहा हो
मन ही मन कोई प्यारा गीत गुनगुना रहा हो
क्या खूब है ये बदला हुआ मिज़ाज़
तसल्ली सी है जैसे जी रहा हु आज

चलते चलते जैसे मंज़िल पे पैर आगया
ज़िन्दगी बदल गई मेरी मुझे जीना आगया।

Thursday, October 31, 2013

मेरा मन

आजीब सी बात है मेरा मन आज फिर उदास है।

कल ही तो समझाया था ,
चलना सिखाया था
ऐसा नहीं है, वैसा नहीं है
सब कुछ समझाया था।

पर फिर क्यों न जाने आज मन कुछ हतास है।

मेरा मन आज फिर उदास है।

इस उदासी को तो दूर जाना ही होगा
कैसे भी मन को तो समझाना ही होगा
रुक कर समय ख़राब कर नहीं सकता
मंज़िल दूर है, मुझे तो चलते जाना ही होगा।

पर कैसे समझाऊं  इसे , और क्या बताऊँ इसे
जो मुझे पता है , वो तो इसके भी पास है।

मेरा मन आज फिर उदास है।

ये उदासी तो मानों जैसे घर कर गई हो
आदतों में घुस गई और दिल में उतर गई हो
ऐसे कब तक चलाऊ मैं
बेमन के कैसे कदम बढ़ाऊं  मैं।

ये कैसा मर्ज है ए मेरे खुदा
क्या इसका कोई इलाज़ है ?

मेरा मन अब भी उदास है…।

Sunday, September 22, 2013

लक्टकिया की कहानी

एक गाँव में  एक लड़का रहता था उसका नाम था लक्टकिया। वह एक चरवाहा था रोज़ अपनी भैसों को लेकर दूर तक घांस चराने ले जाता।  लक्टकिया की शादी हुई एक सुन्दर लड़की से, वह बहुत सुशील थी लेकिन  लक्टकिया हमेसा उसे डांटता रहता।   वह जब रोज़ भैस चारा कर आता तो अपनी पत्नी से लड़ाई करता कभी खाने के ऊपर तो कभी कम के ऊपर , इस रोज़ रोज़ की लड़ाई से उसकी पत्नी परेसान हो गई  थी।

एक दिन की बात है लक्टकिया ने अपनी पत्नी से कहाँ की सुबह कुछ पूड़ी बना दें उसे किसी काम से दूर तक जाना है।  सुबह हुई तो उसकी पत्नी ने आटे में खूब सारा ज़हर मिला कर बड़ी बड़ी चेह पूडिया बनाकर कपडे में बांध कर उसे दे दी। आज उसे रोज़ रोज़ के तानो से मुक्ति मिलने वाली थी।  इस सब से अनजान लक्टकिया अपना कलेवा ले कर सुबह  आगे बढ़ गया , जैसे ही वह नदी के पास पहुंचा झड़ियों में छुपे कुछ चोरों ने उसे धर दबोचा। चोरों के पूंछा इस पोटली में क्या है , डरते हुए लक्टकिया बोल मालिक कुछ पूडिया है जो मेरी पत्नी ने मेरे लिए बनाई थी , इसके  अलावा मेरे पास कुछ नहीं है।  चाहे तो सारी पूड़ियाँ खा लो पर मेरी जन बक्श दो।  चोरों के सोचा चलो कुछ तो मिला इन्हें खाकर आज का कम चलाया जाएँ।  सारे चोरों ने मिलकर पूड़ियाँ खाई और देखते ही देखते सब के सब पूडिओं में मिले ज़हर की वजह से मर गये।  लक्टकिया अचंभित हुआ , इतने में वहां राज के सिपाही आगएं। उन्होंने लक्टकिया से पुछा तुम कोंन हो और ये कोन लोग है जो मरे पड़े हैं। लक्टकिया ने सोचा क्यों न मौके का फायदा उठाया जाएँ , वह अकड कर बोला , ये चोर हैं मेने एक को थप्पड़ मारा और बांकी सब धमक से मर गये।  राजा के सिपाही हैरान की यह कोंन आदमी है जो एक ही थप्पड़ से इतने लोगों को मर देता है, इसे तो महाराज के पास ले जाना चाहिए।  वे लक्टकिया को महाराज के पास ले गए।

लक्टकिया को राजदरबार में पेश किया गया। महाराज ने पुछा क्या यह सच है की तुमने एक चोर को थप्पड़ मार और बांकी पाँच उसकी धमक से मर गये।  क्या सच में तुमने उन छहों अकेले मर दिया ?
लक्टकिया सर झुकर बोल हाँ महाराज।  राजा ने सोचा इतना ताकतवर इन्सान है इसे अपने यहाँ  नौकरी पे रख लेना ठीक रहेगा।  राजा ने उसे अपने यहाँ रख लिये।  लक्टकिया नौकरी पाकर खुश था अब भैंस चराने से मुक्ति मिल गई थी।  लेकिन राजा ने उसे आजमाने की सोची , उसी समय राज्य में एक शेर ने आतंक फैला के रखा था।  वह रोज़ लोगों की बकरियां और गाय उठा ले जाता था।  राजा ने पुछा लक्टकिया क्या तुम उसे मार सकते हो ?  लक्टकिया बोला क्यों नहीं महाराज ये तो मेरे बाएं हाथ का खेल है।  यह सुन कर राजा बहुत खुश हुआ।  राज ने कहा तुम कहो तो कुछ सिपाही तुम्हरे साथ भेज दूं , लक्टकिया बोल नहीं महाराज ये आपके सिपाही किसी काम के नहीं है , शेर को तो में अकेले ही मर दूँगा। दरबार में सन्नाटा छा गया , लक्टकिया ने राजा से कहा महाराज अगर पान सुपारी के लिए कुछ पैसे दे देते तो बड़ी कृपा हॊति।  राजा के इशारे पर उसे कुछ पैसे दे दिए गाये।

लक्टकिया बड़े सुबेरे उठा और पान सुपारी के पैसों से एक बाकरी और रस्सी खरीद लाया।  शाम से पहले वह उसे गाँव के किनारे बने एक मकान में ले गया और उसे घर के अन्दर बांध कर खुद एक पास लगे एक पेड पर चढ़ गया। उसने बकरी की पूँछ में रस्सी बाँधी जिसे वह पेड के ऊपर से खींचता रहता जिस से बंकरी मिम्यती रहती।  जैसे जैसे रात हुई लक्टकिया बार बार रस्सी खीचता रहा , बकरी की आवाज़ सुनकर शेर उसके पास गया और घर में घुस कर बंधी बकरी पर टूट पड़ा।  जैसे ही शेर घर के अन्दर घुसा लक्टकिया ने पेड से नीचे उतर कर कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।  जब सुबह राजा के सिपाही आये लक्टकिया माकन के बाहर सो रहा था।  सिपाहियों ने उसे जगाया और पुछा शेर का क्या हुआ ? लक्टकिया बड़ी अकड़ में ताने मारते हुए बोल, तुम सब किसी काम के नहीं हो बेकार में राजा का पैसा खा रहे हो, जाकर देखो कमरे के अन्दर मेने शेर को कान पकड़ कर अन्दर डाल दिया है। जब सिपाहियों ने खिड़की से झाँक कर देखा तो सच में शेर अन्दर था।  वे सब दोडते हुए राजा के पास गए और उसे सारा हाल बताया।

जब राज ने स्वयं जाकर शेर को कमरे में बंद देखा तब उसे एहसास हो गया की लक्टकिया तो बहुत ही ताकतवर है।  अब उसे लक्टकिया से डर लगाने लगा कुछ मंत्रिओं की सलाह पर उसने सोचा की इतना  शक्तिशाली आदमी जो शेर को कान पकड़ कर कमरे में बंद कर सकता है अगर किसी दिन मेरे ही खिलाफ हो गया तो मेरा राज पाठ तो गया।  राजा ने सोचा ऐसे इन्सान से दूर ही रहना बेह्तार है यही सोच कर उसने लक्टकिया को कुछ पैसे देकर जाने को कहा।  लक्टकिया उदास था बड़ी मुश्किल से तो राजा के यहाँ नौकरी मिली थी अब  है।  राजा ने कुछ सिपाहियों को लक्टकिया के पीछे लगा दिया ताकि वो सच में राज्य की सीमा के पार तक जाये।

लक्टकिया जाने लगा , जाते जाते उसने देखा की राजा की सिपाही पीछे आ रहे हैं। वह एक जगह पर बैठ गया और पास पड़ी एक लकड़ी से ज़मीन खोदने लगा।  जैसे जैसे सिपाही पास आते वह और जोर जोर से लकड़ी ज़मीन पर मारता।  जब सिपाही पास आये तो उन्होंने पुछा , भाई लक्टकिया ये क्या कर रहे हो।  लक्टकिया गुस्से में बोला , क्या तुम्हारे राजा को अब में देखता हूँ , मुझे नौकरी से निकाल दिया , अब में इस गड्ढे से पकड़ कर पूरी धरती पलटा दूंगा सब कुछ ख़तम हो जायेगा , फिर देखता हूँ तुम्हारा राजा क्या करता है। सिपाहियों ने उसके पाव पकड़ लिए और उसे ऐसा न कने के लिए विनती करने लगे। जब राजा को ये बात मालूम पड़ी की लक्टकिया तो पूरी दुनिया ही मिटने पे अड गया है, वो उसके पास गया उसे पूरी इज्ज़त से अपने राजदरबार में लाया और सबके सामने उसे अपना आधा राज्य दे दिया।  तो इस तरह से लक्टकिया  चरवाहे से राजा बन गया , भैस और अकल में अकल ही बड़ी होती है। 

Thursday, June 27, 2013

बूंदों से बात

आज फिर बरसात हो रही है
जैसे मेरी तुमसे मुलाकात हो रही है
तुम कैसे मेरे ख्यालों को समझ  पा रही हो
बारिश की बूदों में तुम ही नज़र आ रही हो
हवाओं की सरसराहट तुम्हारे पास होने का एहसास करा रही है
देखो तो काली बदली भी जैसे मुस्कुरा रही है
दिल चाहता है की ये बरसात यूँ ही चलती रहे
तुम सामने रहो और अपनी बात यूँ ही चलती रहे .....