Thursday, October 31, 2013

मेरा मन

आजीब सी बात है मेरा मन आज फिर उदास है।

कल ही तो समझाया था ,
चलना सिखाया था
ऐसा नहीं है, वैसा नहीं है
सब कुछ समझाया था।

पर फिर क्यों न जाने आज मन कुछ हतास है।

मेरा मन आज फिर उदास है।

इस उदासी को तो दूर जाना ही होगा
कैसे भी मन को तो समझाना ही होगा
रुक कर समय ख़राब कर नहीं सकता
मंज़िल दूर है, मुझे तो चलते जाना ही होगा।

पर कैसे समझाऊं  इसे , और क्या बताऊँ इसे
जो मुझे पता है , वो तो इसके भी पास है।

मेरा मन आज फिर उदास है।

ये उदासी तो मानों जैसे घर कर गई हो
आदतों में घुस गई और दिल में उतर गई हो
ऐसे कब तक चलाऊ मैं
बेमन के कैसे कदम बढ़ाऊं  मैं।

ये कैसा मर्ज है ए मेरे खुदा
क्या इसका कोई इलाज़ है ?

मेरा मन अब भी उदास है…।

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