Saturday, September 6, 2014

संसार की रीत

जो बीता वो चला गया
न कभी भी वापस आने को
बहता पानी ज्युँ निकल गया
बन कर सागर लहराने को

जैसे मृत सय्या पर सोया
न उठा कभी वो आने को
भूला मैं भी बीते कल को
नई अपनी राह बनाने को

अपना कर्तव्य निभाने को
और आगे बढ़ते  जाने को 

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