Thursday, February 13, 2014

रेत के घरोंदे

एका-एक एहसास हुआ

अरे ! एक सपना आधा सजा लिया

झट से लपका उसकी ओर

और हाँथ फेर कर समतल कर दिया

इस से पहले कि लहर आये और सबकुछ मिटा जाये

दिल फिर टूटकर बिखर जाये

मेने ऊंघती उम्मीद को सहला कर सुला दिया

बेबसी का कुछ एहसास तो हुआ पर फिर खुद को समझा लिया

रेत  के घरोंदो का मुकद्दर तो मैं न बदल पाउँगा

पर सोचा है बस लहरों को देखूंगा, अब और न घर बनाऊगा


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