Friday, January 31, 2014

बातों बातों में

कुछ मैं कहता रहा और वो सुनती रही

उसकी आवाज़ कानो में गूंजती रही

मेरे चेहरे में एक खिलखिलाहट सी है

मानो दुनियां कि खुशियां मुझे मिल गई

रात ढलती गई

सुइयां घूमती गई

वक्त थमता नहीं

लव्ज़ कमते नहीं

फिर भी कुछ तो है ऐसा जो रह सा गया

फिर भी कुछ तो है कहके भी कह न गया

रात में नींद में 

जैसे वो ही दिखी

कुछ वो कहते हुए

कुछ मैं सुनते हुए

इंतहा हो गई दिन ये कटता नहीं

रात आये तो फिर से मुलाकात हो

धीरे-धीरे से फिर से वही बात हो...

धीरे-धीरे से फिर से वही बात हो …

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