Wednesday, November 9, 2011

परिचय की गाँठ

यों ही कुछ  मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गाँठ लगा दी!

था पथ पर मैं भूला भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर थी उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी।

यों ही कुछ मुस्काकर  तुमने
परिचय की वो गाँठ लगा दी!

कभी-कभी यों हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूँज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी।

यों ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गाँठ लगा दी!

जड़ता है जीवन की पीड़ा
निष् तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अनजाने वह पीड़ा
छवि के सर से दूर भगा दी।

यों ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की वो गाँठ लगा दी!

                                             - त्रिलोचन

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