Wednesday, November 9, 2011

क्या करूँ सम्वेदना लेकर तुम्हारी ?


क्या करूँ सम्वेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?

मैं दुखी जब जब हुआ
सम्वेदना तुमने    दिखाई
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा
रीति दोनों ने निभाई
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी

क्या करूँ सम्वेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?

एक भी उच्छाव मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा ?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु धारा ?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कबतक पिटारी ?

क्या करूँ सम्वेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?

कौन है जो दूसरों को
दुःख अपना दे सकेगा ?
कोंन है जो दूसरों से
दुःख उसका ले सकेगा ?
क्यों हमारे बीच धोखे
का रहे व्योपार जरी

क्या करूँ सम्वेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?

क्यों न हम यह मन लें , हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर
हर पथिक जिस पर अकेला
दुःख नहीं बटते परस्पर
दूसरों की वेदना में
वेदना जो है दिखता
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल है छिपाता
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी !!

क्या करूँ सम्वेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ? 
                                              - श्री हरिवंशराय बच्चन

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