कुछ मैं कहता रहा और वो सुनती रही
उसकी आवाज़ कानो में गूंजती रही
मेरे चेहरे में एक खिलखिलाहट सी है
मानो दुनियां कि खुशियां मुझे मिल गई
रात ढलती गई
सुइयां घूमती गई
वक्त थमता नहीं
लव्ज़ कमते नहीं
फिर भी कुछ तो है ऐसा जो रह सा गया
फिर भी कुछ तो है कहके भी कह न गया
रात में नींद में
जैसे वो ही दिखी
कुछ वो कहते हुए
कुछ मैं सुनते हुए
इंतहा हो गई दिन ये कटता नहीं
रात आये तो फिर से मुलाकात हो
धीरे-धीरे से फिर से वही बात हो...
धीरे-धीरे से फिर से वही बात हो …