सुबह सुबह या दोपहर में
और कभी रात में भी शायद
देखा है बादलोँ को बनते,
लड़ते- बिगड़ते , बहते शायद
बंगाल की खाड़ी में कारखाना लगा हो जैसे
खेल का मैदान बन गया हो आसमान जैसे
नये- पुराने, काले-गोर , मोटे-छोटे
सब तरह के , हँसते खिलखिलाते से
कुछ धीरे- धीरे थके हारे से
तो कुछ जल्दी में हड़बड़ाते से
चले जा रहे होते हैं
मदमस्त होकर इतराते से
नशे में चूर हों मानो
मंज़िल बहुत दूर हो मानो
सब देखते से जाते हैं
विचारते सोचते से जाते हैं
सूखी धरती से सूखे दिल का हाल जानते हो मानो
लुटाने को अपना सब कुछ बेक़रार हो मानो
ले आते हैं ये रिमझिम बौछार हर बार
थोड़ी पुरानी यादें और थोड़ा पुराना प्यार
और कभी रात में भी शायद
देखा है बादलोँ को बनते,
लड़ते- बिगड़ते , बहते शायद
बंगाल की खाड़ी में कारखाना लगा हो जैसे
खेल का मैदान बन गया हो आसमान जैसे
नये- पुराने, काले-गोर , मोटे-छोटे
सब तरह के , हँसते खिलखिलाते से
कुछ धीरे- धीरे थके हारे से
तो कुछ जल्दी में हड़बड़ाते से
चले जा रहे होते हैं
मदमस्त होकर इतराते से
नशे में चूर हों मानो
मंज़िल बहुत दूर हो मानो
सब देखते से जाते हैं
विचारते सोचते से जाते हैं
सूखी धरती से सूखे दिल का हाल जानते हो मानो
लुटाने को अपना सब कुछ बेक़रार हो मानो
ले आते हैं ये रिमझिम बौछार हर बार
थोड़ी पुरानी यादें और थोड़ा पुराना प्यार