Friday, June 1, 2012

किनारे का सच

बरबादियों की ओर बढ़ा जा रहा हूँ
आज फिर तुमसे मोहब्बत किये जा रहा हूँ
किनारा मिलेगा कैसे मुझे जब
खुद ही समंदर की ओर बहे जा रहा हूँ

आज फिर तुमसे मोहब्बत किये जा रहा हूँ |

भूला नहीं है वो एहसास मुझको
मिल न रही थी जब एक साँस मुझको
वो तूफान वो पानी किनारा न दिखना
जहाँ छोड़ कर चले आये थे मुझको

 फिर भी मैं ये क्या किये जा रहा हूँ
आज फिर तुमसे मोहब्बत किये जा रहा हूँ |

 दिन कैसे बीते, कैसे रातें बिताईं
खुद की ही बातें खुदी को सुनाई
डूबता-उभरता हवाओं सहारे
जब आज मैं लग गया हूँ किनारे

 तो क्यों फिर वो गलती मैं दोहरा रहा हूँ
आज फिर तुमसे मोहब्बत किये जा रहा हूँ |