Tuesday, March 29, 2011

जीवन की अस्थिरता

गरजे बरसे मचले सावन 
भीगी रुत में प्यासा ये मन
जलती लकड़ी हो या चन्दन 
मरुभूमि रहे या वृन्दावन 
ना ना ना क्यों लगता ये मन 
वन उपवन हो या जनजीवन 
आशा दिखती न कोई किरण 
जो जीवित करदे आकर जीवन


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