Tuesday, March 29, 2011

जीवन की अस्थिरता

गरजे बरसे मचले सावन 
भीगी रुत में प्यासा ये मन
जलती लकड़ी हो या चन्दन 
मरुभूमि रहे या वृन्दावन 
ना ना ना क्यों लगता ये मन 
वन उपवन हो या जनजीवन 
आशा दिखती न कोई किरण 
जो जीवित करदे आकर जीवन


Thursday, March 10, 2011

बस आगे बढ़ते जाना है

हम भी हैं काबिल मुश्किल को

अब तो बस यह समझाना है 

मझधार सही, हर बार सही 

बस आगे बढ़ते जाना है 


लहरें सागर का गहना हैं 

उनका आना स्वाभाविक है 

छोटी, ऊँची,नीची लहरें 

तूफाँ आना भी जायज़ है

जो तुम ना मानों हार 

ये लहरें अपना शीष झुकएँगी 

जो तुमने मानी हार 

तो लहरें तुमको आज डूबायेंगी

लहरों से हम क्यों डरें

हमें भू खोज नयी अब लाना है 


मझधार सही हर बार सही 

बस आगे बढ़ते जाना है 


रास्ता सीधा सब चल जाएँ 

अड़चन आई तो रुक जाएँ

पर वीर वही कहलाते हैं 

जो आगे बढ़ते जाते हैं 

आंधी आये तूफाँ आये 

सब रुक जाएँ तो रुक जाएँ

पथ में जो आई चट्टानें

उनको भी अब पिघलाना है 

जब सबने घुटने टेक दिए 

तब हमको पाँव बढ़ाना है 


मझधार सही हर बार सही 

बस आगे बढ़ते जाना है 


जिनको है प्यार उड़ानों से 

वो कब डरते गिर जाने से ?

जो गिरकर हम यूँ रुक जाते

जो थककर हम यूँ झुक जाते

तो क्या पंछी हमसे जलते ?

तो क्या तारे हम छू पाते ?

हर गलती से सीखा हमने 

हर बार नया विश्वास जगा 

"जो चाहा है वो पाया है"

ये गीत हमें फिर गाना है 


मझधार सही हर बार सही 

बस आगे बढ़ते जाना है