रास्ते ही रास्ते देखूं जहाँ हैं रास्ते
क्यों मंजिलें दिखती नहीं चल पडूं जिनके वास्ते
धूमिल पड़ी सी एक छवि
क्यों दिख रही है ना कहीं
जिसको में बढ़ के पा सकूं
अपना जिसे बना सकूं
क्यों धुंध ये छटता नहीं
रास्ता है के कटता नहीं
वैसे के वैसे हैं, के क्यों
कमते नहीं ये फासले
रास्ते ही रास्ते देखूं जहाँ हैं रास्ते
क्यों मंजिलें दिखती नहीं चल पडूं जिनके वास्ते
चल पड़ा जो मैं अगर
पा जाऊँगा मंजिल मगर
धूमिल पड़ी सी एक छवि
क्यों दिख रही है ना कहीं
जिसको में बढ़ के पा सकूं
अपना जिसे बना सकूं
क्यों धुंध ये छटता नहीं
रास्ता है के कटता नहीं
वैसे के वैसे हैं, के क्यों
कमते नहीं ये फासले
रास्ते ही रास्ते देखूं जहाँ हैं रास्ते
क्यों मंजिलें दिखती नहीं चल पडूं जिनके वास्ते
चल पड़ा जो मैं अगर
पा जाऊँगा मंजिल मगर
हर ओर जाती है नज़र
क्यों ना रुकी उस राह पर
जिस पर कदम बढ़ाके मैं
पाजाऊं जो चाहूँ के मैं
मीलों सफ़र भी ख़तम हो
एक कदम की शुरुवात से
रास्ते ही रास्ते देखूं जहाँ हैं रास्ते
क्यों ना रुकी उस राह पर
जिस पर कदम बढ़ाके मैं
पाजाऊं जो चाहूँ के मैं
मीलों सफ़र भी ख़तम हो
एक कदम की शुरुवात से
रास्ते ही रास्ते देखूं जहाँ हैं रास्ते
क्यों मंजिलें दिखती नहीं चल पडूं जिनके वास्ते
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